Saturday, 22 August 2015

नारी शक्ति : सती सावित्री पौराणिक कथा

इस सीरीज में मैं प्राचीनकाल से लेकर अभी तक कुछ प्रसिद्ध महिलाओं के बारे में पोस्ट शेयर करूंगी, जिनपर हर  भारतीय गर्व करते हैं. 
सबसे पहले सती सावित्री के महान चरित्र, उनकी निष्ठा और समर्पण का वर्णन करना चाहूंगी जिसके दम पर वह यमराज से भी जा भिड़ीं और अपने पति के प्राण वापस लाकर ही छोड़ा.



प्राचीनकाल में मद्रदेश अश्वपति नाम के एक राजा राज्य करते थे वे बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय थे. राजा को सब प्रकार का सुख था, किन्तु उन्हें कोई संतान नहीं थी. इसलिए उन्होंने संतानप्राप्ति कामना से अठारह वर्षो तक सावित्री देवी की कठोर तपस्या की. सावित्री देवी ने उन्हें एक तेजस्विनी क्न्या की प्राप्ति का वर दिया. यथासमय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ. राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा. राजकन्या शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भांति दिनों-दिन बढ़ने लगी. धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया. उसके रूप-लावण्य को जो भी देखता उसपर मोहित हो जाता.
राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला. उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा- ‘बेटी! अब तुम विवाह के योग्य हो गयी हो, इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो.’ पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मंत्रियों के साथ स्वर्ण-रथ पर सवार होकर यात्रा के लिए निकली. कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आयी. अपने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देखकर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया.
महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा. सावित्री ने कहा-‘पिताजी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं. अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है.’ नारद जी सहसा चौंक उठे और बोले- ‘राजन! सवित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है. सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वे वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके हैं. सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है.’
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गये. उन्होंने सवित्रीसे कहा- ‘बेटी! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो.’ सावित्री सती थी. उसने दृढ़ता  से  कहा- ‘पिताजी ! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति हैं. जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरूष का वरण कैसे कर सकती हूँ?’
सावित्री का निश्चय दृढ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया. धीरे-धीरे वह  समय भी आ पहुंचा, जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी, सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था. पति एवं सास-ससुर की आज्ञासे सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने के लिए गयी. अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह  पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गया. उसी समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरूष दिखायी पड़ा. वे साक्षात् यमराज थे. उन्होंने सावित्री से कहा- ‘तू पतिव्रता है. तेरे पति की आयु समाप्त हो गयी है. मैं इसे लेने आया हूँ.’ इतना कहकर यमराज ने सत्यवान  के शरीरसे सूक्ष्म जीव को निकला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की तरफ चल दिए. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी. यमराज ने उन्हें वापस लौट जाने को कहा. सावित्री करुण स्वर में बोली – ‘आप मेरे पति के प्राण को जहाँ भी ले जायेंगे, मैं भी वहीँ जाउंगी.’ सावित्री की पति के पति प्रेम को देखकर  यमराज का ह्रदय पिघल गया. उन्होंने सवित्री को एक वर मांगने को कहा. सावित्री ने उनसे अपने सास-ससुर की आँखे अच्छी होने का वर मांग लिया. यमराज फिर आगे बढ़े. सावित्री पीछे पीछे चलने लगी. यमराज ने फिर वर मांगने को कहा. इस प्रकार सावित्री ने अपने ससुर के राज्यप्राप्ति का वर, पिता को पुत्र-प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्रवती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया.  यमराज फिर चल पड़े. सावित्री फिर पीछे- पीछे चल दी. अब यमराज बोले – अब तो लौट जाओ. फिर सावित्री बोली – ‘हे देव! आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है.’  तब यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिया. इस प्रकार सवित्री ने सतीत्व के  बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया. 

Friday, 14 August 2015

Happy Independence Day 2015

Wish you all a very very Happy Independence Day 2015. Let our country grow. Let the Women of India grow and lead a prosperous life. Jai Hind, Jai Bharat!