महान संत मीराबाई
कृष्ण भक्त की परंपरा में मीराबाई का स्थान अन्यतम है. वह श्रीकृष्ण को पति रूप में पूजती थी. इस भक्ति के कारण उन्हें पग –पग पर अनेक कष्ट सहने पड़े किन्तु मीरा ने अपनी टेक नहीं छोडी.
मीरा के पिता का नाम रतनसिंह था. मीरा का पालन – पोषण उनके दादा जी राव दादू जी की देख – रेख में हुआ क्योंकि मीरा के बाल्यकाल में ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था.
मीरा को बचपन से ही कृष्ण से बहुत लगाव था. वह कृष्ण की मूर्ति को सीने से लगाए रखती. उसका विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ. मीरा मेवाड़ की महारानी बनी.
उसने इतना ऊँचा पड़ पाने पर भी कृष्ण की भक्ति नहीं त्यागी. पति की असमी मृत्यु होने पर ससुराल पक्ष की ओर से कष्ट बढ़ते गए. वे मीरा की भक्ति को ढोंग तथा परपुरुषों से मिलने का बहाना समझते थे. उन्हें मीरा का कीर्तन में नाचना-गाना व साधु –संतों से मिलकर भगवदचर्या करना अप्रिय था.
मीरा के देवर विक्रम ने उसकी हत्या करने के लिए साँप व विष का प्याला भेजा किन्तु ईश्वर की कृपा से साँप शालिग्राम में बदल गया व विष भी अमृत हो गया.
मीरा के प्रभु – प्रेम के आगे कोई भी कुचाल टिक न सकी. वह तो गोपाल की दीवानी होक उसके भजन रचती व गाती.
उसे महलों का तनिक भी मोह न था. अनेक तीर्थस्थलों का भ्रमण करते – करते वह प्रसिद्ध संत जीव गोस्वामी जी से मिलने पहुंची. उन्होंने कहलवाया – “मैं किसी स्त्री से नहीं मिलता “
मीरा ने उत्तर दिया – “मैं तो ब्रजभूमि में एक ही पुरूष को जानती हूँ जो कि स्वयं कृष्ण है. वह दूसरा पुरूष कहाँ से आया ?”
यह सुनकर जीव गोस्वामी की ऑंखें खुल गई और वे मीरा के दर्शनार्थ नंगे पाँव दौड़ पड़े.
इधर मीरा के मेवाड़ छोड़ देने से प्राकृतिक आपदाओं ने घेरा डाल दिया. सभी इस बात के लिए विक्रम को दोषी ठहराने लगे तो उसने दूतों के जरिए मीरा को बुलावा भेजा.
मीरा इन दिनों द्वारिकापुरी में थी वह रणछोड़ जी के मन्दिर में नाचने – गाने लगी और नृत्य करते – करते उसी विग्रह में समा गई.
मीरा के पड़ आज भी उसी श्रद्धा व भक्ति से गाए व सुने जाते हैं.वह कहती हैं –
कृष्ण भक्त की परंपरा में मीराबाई का स्थान अन्यतम है. वह श्रीकृष्ण को पति रूप में पूजती थी. इस भक्ति के कारण उन्हें पग –पग पर अनेक कष्ट सहने पड़े किन्तु मीरा ने अपनी टेक नहीं छोडी.
मीरा के पिता का नाम रतनसिंह था. मीरा का पालन – पोषण उनके दादा जी राव दादू जी की देख – रेख में हुआ क्योंकि मीरा के बाल्यकाल में ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था.
मीरा को बचपन से ही कृष्ण से बहुत लगाव था. वह कृष्ण की मूर्ति को सीने से लगाए रखती. उसका विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से हुआ. मीरा मेवाड़ की महारानी बनी.
उसने इतना ऊँचा पड़ पाने पर भी कृष्ण की भक्ति नहीं त्यागी. पति की असमी मृत्यु होने पर ससुराल पक्ष की ओर से कष्ट बढ़ते गए. वे मीरा की भक्ति को ढोंग तथा परपुरुषों से मिलने का बहाना समझते थे. उन्हें मीरा का कीर्तन में नाचना-गाना व साधु –संतों से मिलकर भगवदचर्या करना अप्रिय था.
मीरा के देवर विक्रम ने उसकी हत्या करने के लिए साँप व विष का प्याला भेजा किन्तु ईश्वर की कृपा से साँप शालिग्राम में बदल गया व विष भी अमृत हो गया.
मीरा के प्रभु – प्रेम के आगे कोई भी कुचाल टिक न सकी. वह तो गोपाल की दीवानी होक उसके भजन रचती व गाती.
उसे महलों का तनिक भी मोह न था. अनेक तीर्थस्थलों का भ्रमण करते – करते वह प्रसिद्ध संत जीव गोस्वामी जी से मिलने पहुंची. उन्होंने कहलवाया – “मैं किसी स्त्री से नहीं मिलता “
मीरा ने उत्तर दिया – “मैं तो ब्रजभूमि में एक ही पुरूष को जानती हूँ जो कि स्वयं कृष्ण है. वह दूसरा पुरूष कहाँ से आया ?”
यह सुनकर जीव गोस्वामी की ऑंखें खुल गई और वे मीरा के दर्शनार्थ नंगे पाँव दौड़ पड़े.
इधर मीरा के मेवाड़ छोड़ देने से प्राकृतिक आपदाओं ने घेरा डाल दिया. सभी इस बात के लिए विक्रम को दोषी ठहराने लगे तो उसने दूतों के जरिए मीरा को बुलावा भेजा.
मीरा इन दिनों द्वारिकापुरी में थी वह रणछोड़ जी के मन्दिर में नाचने – गाने लगी और नृत्य करते – करते उसी विग्रह में समा गई.
मीरा के पड़ आज भी उसी श्रद्धा व भक्ति से गाए व सुने जाते हैं.वह कहती हैं –
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू
किरपा कर अपनाओ
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
जन्म –जन्म की पूंजी पाई
जग में सभी खवाओ
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
हरष – हरष जस गाओ
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो.