भारत की महान नारी - रानी कलावती
रानी कलावती ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी बलि चढ़ा दी. केवल भारत की ही मिटटी में ऐसी पतिव्रताएं जन्मी हैं जो जन्म – जन्मान्तर के साथी के लिए प्राण तक होम कर देती हैं.
कलावती, राजा कर्णसिंह की अर्धांगिनी थी. उस समय स्त्रियों को अस्त्र – शस्त्र विद्या में भी निपुण किया जाता था. रानी भी युद्ध कौशल में निपुण थी.
एक बार अलाउद्दीन. खिलजी के सेनापति ने राजा के पास संदेश भिजवाया – “हमारे समक्ष समर्पण करो अथवा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ.”
एक क्षत्रिय के लिए यह संदेश किसी चुनौती से कम न था कर्णसिंह ने निश्चय किया कि वह शत्रु को अपनी भूमि पर पाँव तक न धरने देगा.उसने युद्ध का ऐलान क्र दिया. चलते समय अन्तःपुर में रानी से विदा लेने पहुँचा तो कलावती ने एक अनूठी माँग की वह बोली –
“प्राणनाथ ! मैं आपके युद्ध –कौशल से अनभिज्ञ नहीं हूँ. यदि आप चाहें तो अकेले ही शत्रु – सेना का संहार कर सकते हैं किन्तु मैं चाहती हूँ कि इस युद्ध में मैं आपके साथ चलूँ.मेरी अस्त्र –शस्त्र विद्या यदि काम न आई तो उसे धारण करने से क्या लाभ हुआ ?”
कर्णसिंह ने रानी को कहा – “ मैं एक क्षत्रिय हूँ. जीते जी अपनी मातृभूमि पर शत्रु का पाँव न पड़ने दूंगा. तुम निश्चित रहो व यहीं हमारी प्रतीक्षा करो “
परन्तु रानी नहीं मानी. राजा- रानी के साथ देशभक्त राजपूतों की सेना चल पड़ी. यद्दपि वे सब संख्या में बहुत कम थे किन्तु उनका मनोबल कहीं ऊँचा था घमासान युद्ध हुआ. मुगल सेना गाजर- मूली की तरह कट – कट कर गिरने लगी.
रानी कलावती भी एक जांबाज सैनिक की भांति लड़ रही थी. तभी एक विष बुझा तीर राजा को लगा और वह बेहोश हो गया. रानी ने पति की इसी अवस्था देखी तो वह दुगुने जोश से तलवार चलाने लगी. रानी माँ के इस उत्साहपूर्ण कृत्य से बची –बची सेना भी जोश से भर उठी.
परिणामत: शत्रु सेना को पीछे हटना पड़ा. राजा कर्णसिंह की विजय हुई. रानी शीघ्रता से राजा के साथ महल लौटी.
राजवैध ने कहा – “यदि राजा के शरीर से विष न चूसा गया तो उनकी प्राण रक्षा संभव नहीं है”
“क्या----?” महारानी कलावती स्तंभित हो उठी.
वैद्दराज ने आगे कहा – “किसी विषचूसक को बुलवाएँ क्योंकि इतना निश्चित है कि विष चूसने वाला नहीं बचेगा.”
वैद्दराज तो उपाय बता कर औषधि लेने चल दिए किन्तु रानी ने देर करना उचित न समझा. वह स्वयं पति के शरीर का विष चूसने लगी.
उसका मुख नीला पड़ने लगा. इधर राजा कर्णसिंह ने धीरे धीरे अपनी आंखें खोलीं और इधर रानी का निष्प्राण शरीर धरा पर लुढक गया.
रानी ने सिद्ध कर दिखाया कि नारी यदि चाहे तो यमराज से भी पति के प्राण लौटा सकती है जिस प्रकार सावित्री ने सत्यवान के प्राण बचाए.
रानी कलावती ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी बलि चढ़ा दी. केवल भारत की ही मिटटी में ऐसी पतिव्रताएं जन्मी हैं जो जन्म – जन्मान्तर के साथी के लिए प्राण तक होम कर देती हैं.
कलावती, राजा कर्णसिंह की अर्धांगिनी थी. उस समय स्त्रियों को अस्त्र – शस्त्र विद्या में भी निपुण किया जाता था. रानी भी युद्ध कौशल में निपुण थी.
एक बार अलाउद्दीन. खिलजी के सेनापति ने राजा के पास संदेश भिजवाया – “हमारे समक्ष समर्पण करो अथवा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ.”
एक क्षत्रिय के लिए यह संदेश किसी चुनौती से कम न था कर्णसिंह ने निश्चय किया कि वह शत्रु को अपनी भूमि पर पाँव तक न धरने देगा.उसने युद्ध का ऐलान क्र दिया. चलते समय अन्तःपुर में रानी से विदा लेने पहुँचा तो कलावती ने एक अनूठी माँग की वह बोली –
“प्राणनाथ ! मैं आपके युद्ध –कौशल से अनभिज्ञ नहीं हूँ. यदि आप चाहें तो अकेले ही शत्रु – सेना का संहार कर सकते हैं किन्तु मैं चाहती हूँ कि इस युद्ध में मैं आपके साथ चलूँ.मेरी अस्त्र –शस्त्र विद्या यदि काम न आई तो उसे धारण करने से क्या लाभ हुआ ?”
कर्णसिंह ने रानी को कहा – “ मैं एक क्षत्रिय हूँ. जीते जी अपनी मातृभूमि पर शत्रु का पाँव न पड़ने दूंगा. तुम निश्चित रहो व यहीं हमारी प्रतीक्षा करो “
परन्तु रानी नहीं मानी. राजा- रानी के साथ देशभक्त राजपूतों की सेना चल पड़ी. यद्दपि वे सब संख्या में बहुत कम थे किन्तु उनका मनोबल कहीं ऊँचा था घमासान युद्ध हुआ. मुगल सेना गाजर- मूली की तरह कट – कट कर गिरने लगी.
रानी कलावती भी एक जांबाज सैनिक की भांति लड़ रही थी. तभी एक विष बुझा तीर राजा को लगा और वह बेहोश हो गया. रानी ने पति की इसी अवस्था देखी तो वह दुगुने जोश से तलवार चलाने लगी. रानी माँ के इस उत्साहपूर्ण कृत्य से बची –बची सेना भी जोश से भर उठी.
परिणामत: शत्रु सेना को पीछे हटना पड़ा. राजा कर्णसिंह की विजय हुई. रानी शीघ्रता से राजा के साथ महल लौटी.
राजवैध ने कहा – “यदि राजा के शरीर से विष न चूसा गया तो उनकी प्राण रक्षा संभव नहीं है”
“क्या----?” महारानी कलावती स्तंभित हो उठी.
वैद्दराज ने आगे कहा – “किसी विषचूसक को बुलवाएँ क्योंकि इतना निश्चित है कि विष चूसने वाला नहीं बचेगा.”
वैद्दराज तो उपाय बता कर औषधि लेने चल दिए किन्तु रानी ने देर करना उचित न समझा. वह स्वयं पति के शरीर का विष चूसने लगी.
उसका मुख नीला पड़ने लगा. इधर राजा कर्णसिंह ने धीरे धीरे अपनी आंखें खोलीं और इधर रानी का निष्प्राण शरीर धरा पर लुढक गया.
रानी ने सिद्ध कर दिखाया कि नारी यदि चाहे तो यमराज से भी पति के प्राण लौटा सकती है जिस प्रकार सावित्री ने सत्यवान के प्राण बचाए.