Tuesday, 10 November 2015

The Great Indian Women Kalavati

भारत की महान नारी - रानी कलावती 
रानी कलावती ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी बलि चढ़ा दी. केवल भारत की ही मिटटी में ऐसी पतिव्रताएं जन्मी हैं जो जन्म – जन्मान्तर के साथी के लिए प्राण तक होम  कर देती हैं.
कलावती, राजा कर्णसिंह की अर्धांगिनी थी. उस समय स्त्रियों को अस्त्र – शस्त्र विद्या में भी निपुण किया जाता था. रानी भी युद्ध कौशल में निपुण थी.
एक बार अलाउद्दीन. खिलजी के सेनापति ने राजा के पास संदेश भिजवाया –  “हमारे समक्ष समर्पण करो अथवा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ.”
एक क्षत्रिय के लिए यह संदेश किसी चुनौती से कम न था कर्णसिंह ने निश्चय किया कि वह शत्रु को अपनी भूमि पर पाँव तक न धरने देगा.उसने युद्ध का ऐलान क्र दिया. चलते समय अन्तःपुर में रानी से विदा लेने पहुँचा तो कलावती ने एक अनूठी माँग की वह बोली –
“प्राणनाथ ! मैं आपके युद्ध –कौशल से अनभिज्ञ नहीं हूँ. यदि आप चाहें तो अकेले ही शत्रु – सेना का संहार कर  सकते हैं किन्तु मैं चाहती हूँ कि इस युद्ध में मैं आपके साथ चलूँ.मेरी अस्त्र –शस्त्र विद्या यदि काम न आई तो उसे धारण करने से क्या लाभ हुआ ?”

कर्णसिंह ने रानी को कहा –  “ मैं एक क्षत्रिय हूँ. जीते जी अपनी मातृभूमि पर शत्रु का पाँव न पड़ने दूंगा. तुम निश्चित रहो व यहीं हमारी प्रतीक्षा करो “

परन्तु रानी नहीं मानी.  राजा- रानी के साथ देशभक्त राजपूतों की सेना चल पड़ी. यद्दपि वे सब संख्या में बहुत कम थे किन्तु उनका मनोबल कहीं ऊँचा था घमासान युद्ध हुआ. मुगल सेना गाजर- मूली की तरह कट – कट कर गिरने लगी.
रानी कलावती भी एक जांबाज  सैनिक की भांति लड़ रही थी. तभी एक विष बुझा तीर राजा को लगा और वह बेहोश हो गया. रानी ने पति की इसी अवस्था देखी तो वह दुगुने जोश से तलवार चलाने लगी. रानी माँ के इस उत्साहपूर्ण कृत्य से बची –बची सेना भी जोश से भर उठी.
परिणामत: शत्रु सेना को पीछे हटना पड़ा. राजा कर्णसिंह की विजय हुई. रानी शीघ्रता से राजा के साथ महल लौटी.
राजवैध ने कहा – “यदि राजा के शरीर से विष न चूसा गया तो उनकी प्राण रक्षा  संभव नहीं है”
“क्या----?” महारानी कलावती स्तंभित हो उठी.
वैद्दराज ने आगे कहा – “किसी विषचूसक को बुलवाएँ क्योंकि इतना निश्चित है कि विष चूसने वाला नहीं बचेगा.”
वैद्दराज तो उपाय बता कर औषधि लेने चल दिए किन्तु रानी ने देर करना उचित न समझा. वह स्वयं पति के शरीर का विष चूसने लगी.
उसका मुख नीला पड़ने लगा. इधर राजा कर्णसिंह ने धीरे धीरे अपनी आंखें खोलीं और इधर रानी का निष्प्राण शरीर धरा पर लुढक गया.
रानी ने सिद्ध कर दिखाया कि नारी यदि चाहे तो यमराज से भी पति के प्राण लौटा सकती है जिस प्रकार सावित्री ने सत्यवान के प्राण बचाए.

Saturday, 7 November 2015

Lopamudra Female Philosopher of Vedic India

लोपामुद्रा : वैदिक भारत की महिला दार्शनिक 

लोपामुद्रा को कौशितकी और वरप्रदा के नाम से भी जाना जाता है. लोपामुद्रा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं.  उनके पिता विदर्भराज थे. प्राचीन भारतीय वैदिक साहित्य के अनुसार वह एक प्रसिद्द दार्शनिक थीं. लोपामुद्रा ने भी ऋचाओं का संकलन किया है.

अगस्त्य एवं लोपामुद्रा  Image: wikipedia
लोपामुद्रा का चरित्र भारतीय नारी का सटीक चित्रण प्रस्तुत करता है. वह पति की पद  – पद  अनुगामिनी थीं. उन्होंने कभी भी पति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया. जीवन में एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जब उन्होंने पति के किसी कार्य में दोष निकाला हो या अपना असंतोष प्रकट किया हो.
वह एक सुगृहिणी थीं. अतिथि सत्कार में उनकी विशेष रुचि थी. वे एक ऋचा में कहती हैं –
हे स्वामी ! सम्पूर्ण जीवन आपकी सेवा में बिता कर मैं थक गई हूँ. मैं वृद्धा हो गई हूँ. मेरे शरीर में पहले जैसी शक्ति नहीं रही. इतना होने पर भी मुझे आपकी सेवा में जो आनन्द आता है वह अतुलनीय है. आपकी सेवा ही मेरे जीवन की परम तपस्या है. हे प्रभु ! मुझ पर अपना अनुग्रह बनाए रखें.”
कहा जाता है कि लोपामुद्रा की रचना ऋषि अगस्त्य  ने ही की थी. जैसा कि उनके नाम से ही स्पष्ट है कि उनकी रचना के दौरान पशु -पक्षियों और पेड़ पौधों की मुद्राओं का लोप हो गया था.