Ayesha Noor ( Photo: Telegraph India) |
कोलकाता के झुग्गी झोपडी
इलाके में रहने वाली आयशा नूर अली एक दिन कराटे चैंपियन बन जायेगी और थाईलैंड से
गोल्ड मैडल लेकर आयेगी, ऐसा शायद किसी ने कल्पना भी नहीं किया होगा. आयशा को
एपिलेप्टिक फूट बीमारी है, एक मजदुर परिवार से आती है. छः साल पहले उसके पिता का इंतकाल
हो गया, लेकिन इन सबको पीछे छोड़ते हुए आयशा ने वो कारनामा कर दिखाया जो मुश्किल ही
नहीं नामुमकिन जान पड़ता है. आयशा के भाई दैनिक मजदूरी कर आयशा को कराटे का
प्रशिक्षण दिलवाते हैं. आयशा की माता जी कहती हैं : इसने कोलकाता, मुंबई और
थाईलैंड से मैडल जीतकर लाया है. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि यह लड़की हमारा और देश
का नाम रौशन का देगी.
आयशा का सिलेक्शन जब कराटे
टूर्नामेंट थाईलैंड के लिए हुआ था तब उसके पास इतनी धनराशि भी नहीं थी वह थाईलैंड
जा सके. भला हो मीडिया का और NGO का, जिनके प्रयास से धनराशि का इंतजाम हो पाया और
वह थाईलैंड जा सकी. सवाल यह उठता है कि
क्या आयशा भी कराटे की दुनिया में मैरी
कोम की तरह छा जानेवाली है क्या?
ऐसे में भारत सरकार और
बंगाल सरकार को उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिए. आयशा का कहना है कि वह बड़ी होकर गरीब बच्चे जो की खेल
के माध्यम से आगे बढ़ना चाहती हैं उनका मदद करना चाहती है. इस होनहार लड़की ने अपनी
दृढ लगन और मजबूत इरादे के बल पर नयी बुलंदी को छुआ है. आयशा ने 40 देशों के
टूर्नामेंट में गोल्ड मैडल जीता. 30-25 किलो वर्ग के अन्य प्रतियोगी कहते हैं कि
वह बहार तो बिलकुल शांत और शर्मीली सी दीखती है लेकिन रिंग में आते ही उसकी
अटैकिंग और फुर्ती देखते ही बनाता है. आयशा का मानना है कि लड़कियां लडको से ज्यादा
ताकतवर होती हैं. वह अपनी रक्षा बखूबी कर सकती हैं.
विदित हो कि 19 वर्षीया आयशा
कराटे में ब्लैक बेल्ट है.
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