पन्ना धाय का महान त्याग
नारी के अनेक रूप हैं वह माँ, प्रेमिका, पत्नी, बहन, मित्र आदि रूप में समाज का कल्याण करती है व अपनी सद्वृत्तियों द्वारा प्रकाश फैलाती है.
आपने पन्ना धाय का नाम अवश्य सुना होगा. वह एक राजपूत महिला थी. उसकी बफादारी व कर्तव्य परायणता आज भी याद की जाती है. उसका अनुपम बलिदान युगों-युगों तक संसार को प्रेरणा देता रहेगा.
मातृभूमि की रक्षा के लिए उसने हंसते-हंसते अपने लाल को न्योछावर कर दिया.पन्ना धाय का चरित्र अपने आप में बेजोड़ है. मालिक के पुत्र व भावी राजा की इक्षा के लिए उसने अपने प्राण तक संकट में डाल दिए .
महाराजा संग्राम सिंह एक न्यायप्रिय शासक थे, उनकी म्रत्यु के पश्चात् विक्रम सिंह ने चितौड़ का राज-घाट संभाला.संभाला कहने की बजे कहना चाहिए कि उसने राज-घाट का सत्यानाश किया. वह एक अदूरदर्शी,निकम्मा व आलसी शासक था
भला ऐसे राजा को कोई कब तक सह सकता है? उसके छोटे भाई उदयसिंह को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया व विक्रम सिंह को राजगद्दी से हटा दिया गया. उदयसिंह की आयु उस समय छ: वर्ष के लगभग थी.
राजमाता कर्णावती भी स्वर्ग सिधार चुकी थी. उदयसिंह का लालन-पालन पन्ना धाय की गोद में हो रहा था. उदयसिंह भावी राजा था इसलिए उस पर अनेक लोगों की कुदुष्टि भी थी, ऐसा ही एक व्यक्ति था ‘बनवीर’.
उसे उदयसिंह के संरक्षण का दायित्व सौंपा गया था किन्तु कभी-कभी रक्षक ही भक्षक बन बैठता है. बनवीर ने सोचा –
“यदि मैं उदयसिंह को मरवा दूँ तो आसानी से गद्दी हासिल कर सकता हूँ. यूं भी मेरे खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है.”
बनवीर क्रूर था. उसे उदयसिंह को मारने की योजना बनाने में अधिक समय नहीं लगा.
किसी तरह यह समाचार पन्ना धाय तक पहुँच गया. वह उदयसिंह को अपने बेटे से भी बढकर चाहती थी क्योंकि वह चितौड़ का भावी शासक था.
उसने कुछ सोच-विचार के पश्चात् बहुत बड़ा फैसला क्र दिया. पन्ना का अपना पुत्र भी उदयसिंह का हमउम्र था.
उसने उदयसिंह को दूध में थोड़ी अफीम पिला क्र गहरी नींद में सुला दिया व फूल-पत्तों से भरे टोकरे में छिपकर अपनी विश्वस्त दासी से सारी बात कह दी,\दासी चुपके से उस टोकरे को उठा ले गई व पन्ना के बताए गए स्थान पर प्रतीक्षा करने लगी. उसी रात बनवीर ने अपनी योजनानुसार उदयसिंह के कक्ष में प्रवेश किया.
उदयसिंह के बिस्तर पर पन्ना का अपना पुत्र चंदन सो रहा था. पन्ना ने उसे ही उदय के कपड़े पहना कर ढाँप कर सुला दिया था.
बनवीर को भला पन्ना से क्या भय था. उसने बेधडक होकर कमरे में प्रवेश किया व सोते हुए चंदन को उदयसिंह के भुलावे में आकर तलवार से काट दिया.
माँ पन्ना का जिगर चाक हो गया. उसका अपना पुत्र उसकी ही आँखों के आगे खत्म हो गया.
पन्ना की दरियादिली देखिए उसने उफ तक न की. आँखों से निकलते आंसुओं को रोक दिया. गले से उमड़ती रूलाई को भीतर ही दवा दिया व अपने होंठ काट लिए.
आज तक अपनी मातृभूमि के शासक के लिए ऐसी कुर्बानी किसी ने न दी होगी. एक माँ स्वयं तो बलिदान हो सकती है किन्तु अपने पुत्र को खरोंच भी नहीं सह पाती किन्तु पन्ना ने अपने ही हाथों अपना चंदन मातृभूमि की भेंट चढ़ा दिया.
बनवीर के बाहर जाते ही उसने चंदन की लाश को उठाया और वहाँ पहुँच गई जहाँ दासी उसकी प्रतीक्षा क्र रही थी. वीरा नदी के तट पर पन्ना धाय ने अपने पुत्र का अंतिम संस्कार किया व उदय को गोद में छिपा कर आश्रय की खोज में भटकने लगी. अंत में वह आशाशाह के पास पहुंची व उसकी गोद में उदय को डाल कर कहा –
“लो, अपने राजा को संभालो.”
इधर बनवीर को असलियत पता चली तो वह क्रोध के मारे बौखला गया किन्तु पाप का घड़ा फूटते देर नहीं लगती. कुछ समय पश्चात् ही वह मारा गया.
उदयसिंह चितौड़ की गद्दी पर आसीन हुए. पन्ना धाय का बलिदान सार्थक हुआ. उदयसिंह ने ‘माँ’ कह कर उसकी चरण-रज माथे से लगा ली.
नारी के अनेक रूप हैं वह माँ, प्रेमिका, पत्नी, बहन, मित्र आदि रूप में समाज का कल्याण करती है व अपनी सद्वृत्तियों द्वारा प्रकाश फैलाती है.
आपने पन्ना धाय का नाम अवश्य सुना होगा. वह एक राजपूत महिला थी. उसकी बफादारी व कर्तव्य परायणता आज भी याद की जाती है. उसका अनुपम बलिदान युगों-युगों तक संसार को प्रेरणा देता रहेगा.
मातृभूमि की रक्षा के लिए उसने हंसते-हंसते अपने लाल को न्योछावर कर दिया.पन्ना धाय का चरित्र अपने आप में बेजोड़ है. मालिक के पुत्र व भावी राजा की इक्षा के लिए उसने अपने प्राण तक संकट में डाल दिए .
महाराजा संग्राम सिंह एक न्यायप्रिय शासक थे, उनकी म्रत्यु के पश्चात् विक्रम सिंह ने चितौड़ का राज-घाट संभाला.संभाला कहने की बजे कहना चाहिए कि उसने राज-घाट का सत्यानाश किया. वह एक अदूरदर्शी,निकम्मा व आलसी शासक था
भला ऐसे राजा को कोई कब तक सह सकता है? उसके छोटे भाई उदयसिंह को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया व विक्रम सिंह को राजगद्दी से हटा दिया गया. उदयसिंह की आयु उस समय छ: वर्ष के लगभग थी.
राजमाता कर्णावती भी स्वर्ग सिधार चुकी थी. उदयसिंह का लालन-पालन पन्ना धाय की गोद में हो रहा था. उदयसिंह भावी राजा था इसलिए उस पर अनेक लोगों की कुदुष्टि भी थी, ऐसा ही एक व्यक्ति था ‘बनवीर’.
उसे उदयसिंह के संरक्षण का दायित्व सौंपा गया था किन्तु कभी-कभी रक्षक ही भक्षक बन बैठता है. बनवीर ने सोचा –
“यदि मैं उदयसिंह को मरवा दूँ तो आसानी से गद्दी हासिल कर सकता हूँ. यूं भी मेरे खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है.”
बनवीर क्रूर था. उसे उदयसिंह को मारने की योजना बनाने में अधिक समय नहीं लगा.
किसी तरह यह समाचार पन्ना धाय तक पहुँच गया. वह उदयसिंह को अपने बेटे से भी बढकर चाहती थी क्योंकि वह चितौड़ का भावी शासक था.
उसने कुछ सोच-विचार के पश्चात् बहुत बड़ा फैसला क्र दिया. पन्ना का अपना पुत्र भी उदयसिंह का हमउम्र था.
उसने उदयसिंह को दूध में थोड़ी अफीम पिला क्र गहरी नींद में सुला दिया व फूल-पत्तों से भरे टोकरे में छिपकर अपनी विश्वस्त दासी से सारी बात कह दी,\दासी चुपके से उस टोकरे को उठा ले गई व पन्ना के बताए गए स्थान पर प्रतीक्षा करने लगी. उसी रात बनवीर ने अपनी योजनानुसार उदयसिंह के कक्ष में प्रवेश किया.
उदयसिंह के बिस्तर पर पन्ना का अपना पुत्र चंदन सो रहा था. पन्ना ने उसे ही उदय के कपड़े पहना कर ढाँप कर सुला दिया था.
बनवीर को भला पन्ना से क्या भय था. उसने बेधडक होकर कमरे में प्रवेश किया व सोते हुए चंदन को उदयसिंह के भुलावे में आकर तलवार से काट दिया.
माँ पन्ना का जिगर चाक हो गया. उसका अपना पुत्र उसकी ही आँखों के आगे खत्म हो गया.
पन्ना की दरियादिली देखिए उसने उफ तक न की. आँखों से निकलते आंसुओं को रोक दिया. गले से उमड़ती रूलाई को भीतर ही दवा दिया व अपने होंठ काट लिए.
आज तक अपनी मातृभूमि के शासक के लिए ऐसी कुर्बानी किसी ने न दी होगी. एक माँ स्वयं तो बलिदान हो सकती है किन्तु अपने पुत्र को खरोंच भी नहीं सह पाती किन्तु पन्ना ने अपने ही हाथों अपना चंदन मातृभूमि की भेंट चढ़ा दिया.
बनवीर के बाहर जाते ही उसने चंदन की लाश को उठाया और वहाँ पहुँच गई जहाँ दासी उसकी प्रतीक्षा क्र रही थी. वीरा नदी के तट पर पन्ना धाय ने अपने पुत्र का अंतिम संस्कार किया व उदय को गोद में छिपा कर आश्रय की खोज में भटकने लगी. अंत में वह आशाशाह के पास पहुंची व उसकी गोद में उदय को डाल कर कहा –
“लो, अपने राजा को संभालो.”
इधर बनवीर को असलियत पता चली तो वह क्रोध के मारे बौखला गया किन्तु पाप का घड़ा फूटते देर नहीं लगती. कुछ समय पश्चात् ही वह मारा गया.
उदयसिंह चितौड़ की गद्दी पर आसीन हुए. पन्ना धाय का बलिदान सार्थक हुआ. उदयसिंह ने ‘माँ’ कह कर उसकी चरण-रज माथे से लगा ली.
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