महान भारतीय नारी - मैत्रेयी
बृहदारण्यक उपनिषद के अनेक पृष्ठों पर मैत्रेयी की विद्वता के दर्शन होते हैं. वे ऋषि मित्र की कन्या थीं अतः मैत्रेयी कहलाई. ऋषिवर ने अपनी पुत्री के पठन –पाठन की ओर विशेष ध्यान दिया.
युवावस्था में मैत्रेयी का विवाह प्रकाण्ड पंडित महर्षि याज्ञवल्क्य से हुआ. याज्ञवल्क्य की दो स्त्रियाँ थीं – कात्यायनी व मैत्रेयी .
जब महर्षि वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण करने लगे तो उन्हें दोनों स्त्रियों के संभावित कलह की चिंता सताने लगी. उन्होंने निश्चय किया कि वह कात्यायनी व मैत्रेयी में सम्पति का बराबर भाग कर देंगें.
पति के ऐसे वचन सुन कर कात्यायनी तो मौन ही रही किन्तु मैत्रेयी शांत न रह सकी. इसी विषय पर उनका अपने पति के साथ तर्क – वितर्क हुआ. याज्ञवल्क्य भी अपनी पत्नी की विद्वता के आगे नतमस्तक हो उठे.
मैत्रेयी ने कहा – “यदि समूचे संसार का वैभव मेरे करतल पर आ जाए तो क्या मैं मोक्ष पा सकती हूँ?”
महर्षि जानते थे कि यह असंभव है. उन्होंने उत्तर दिया –
“न ,ऐसा तो होना कठिन है.”
तब मैत्रेयी ने दृढ भाव से कहा – “जिससे मुझे अमरता प्राप्त नहीं हो सकती, उसे मैं लेकर क्या करूंगी?
आप मुझे ज्ञान का उपदेश दें जिसे पाकर मैं भी अमर हो जाउँ.“
महर्षि अपनी पत्नी की जिज्ञासापूर्ण वाणी सुन कर गद्गद् हो उठे और कहा –
“संसार में आत्मा ही सबसे बड़ी है. इसी का श्रवण, दर्शन व मनन करना चाहिए. इसके यथार्थ ज्ञान से ही प्राणी सब कुछ पा सकता है,”
मैत्रेयी ने अपने पति से ब्रह्म ज्ञान का उपदेश पाया. तत्पश्चात मैत्रेयी ने प्रार्थना की –
बृहदारण्यक उपनिषद के अनेक पृष्ठों पर मैत्रेयी की विद्वता के दर्शन होते हैं. वे ऋषि मित्र की कन्या थीं अतः मैत्रेयी कहलाई. ऋषिवर ने अपनी पुत्री के पठन –पाठन की ओर विशेष ध्यान दिया.
युवावस्था में मैत्रेयी का विवाह प्रकाण्ड पंडित महर्षि याज्ञवल्क्य से हुआ. याज्ञवल्क्य की दो स्त्रियाँ थीं – कात्यायनी व मैत्रेयी .
Picture courtesy: http://www.indianscriptures.com/ |
जब महर्षि वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण करने लगे तो उन्हें दोनों स्त्रियों के संभावित कलह की चिंता सताने लगी. उन्होंने निश्चय किया कि वह कात्यायनी व मैत्रेयी में सम्पति का बराबर भाग कर देंगें.
पति के ऐसे वचन सुन कर कात्यायनी तो मौन ही रही किन्तु मैत्रेयी शांत न रह सकी. इसी विषय पर उनका अपने पति के साथ तर्क – वितर्क हुआ. याज्ञवल्क्य भी अपनी पत्नी की विद्वता के आगे नतमस्तक हो उठे.
मैत्रेयी ने कहा – “यदि समूचे संसार का वैभव मेरे करतल पर आ जाए तो क्या मैं मोक्ष पा सकती हूँ?”
महर्षि जानते थे कि यह असंभव है. उन्होंने उत्तर दिया –
“न ,ऐसा तो होना कठिन है.”
तब मैत्रेयी ने दृढ भाव से कहा – “जिससे मुझे अमरता प्राप्त नहीं हो सकती, उसे मैं लेकर क्या करूंगी?
आप मुझे ज्ञान का उपदेश दें जिसे पाकर मैं भी अमर हो जाउँ.“
महर्षि अपनी पत्नी की जिज्ञासापूर्ण वाणी सुन कर गद्गद् हो उठे और कहा –
“संसार में आत्मा ही सबसे बड़ी है. इसी का श्रवण, दर्शन व मनन करना चाहिए. इसके यथार्थ ज्ञान से ही प्राणी सब कुछ पा सकता है,”
मैत्रेयी ने अपने पति से ब्रह्म ज्ञान का उपदेश पाया. तत्पश्चात मैत्रेयी ने प्रार्थना की –
असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योमाअमृतं गमय
आविरवीर्य एधि
रूद्रे यत्ते दक्षिण मुखे
तेन मा पाहि नित्यम्
मैत्रेयी के यह शब्द आज भी कोटि – कोटि जन के प्रेरणा स्रोत हैं.