Tuesday, 8 December 2015

Great Indian Women Maitreyi

महान भारतीय नारी - मैत्रेयी 

बृहदारण्यक उपनिषद के अनेक पृष्ठों पर मैत्रेयी की विद्वता के दर्शन होते हैं. वे ऋषि मित्र की कन्या थीं अतः मैत्रेयी कहलाई. ऋषिवर ने अपनी पुत्री के पठन –पाठन की ओर विशेष ध्यान दिया.
युवावस्था में मैत्रेयी का विवाह प्रकाण्ड पंडित महर्षि याज्ञवल्क्य से हुआ. याज्ञवल्क्य की दो स्त्रियाँ थीं – कात्यायनी व मैत्रेयी .
Picture courtesy: http://www.indianscriptures.com/

जब महर्षि वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण करने लगे तो उन्हें दोनों स्त्रियों के संभावित कलह की चिंता सताने लगी. उन्होंने निश्चय किया कि वह कात्यायनी व मैत्रेयी में सम्पति का बराबर भाग कर देंगें.
पति के ऐसे वचन सुन कर  कात्यायनी तो मौन ही रही किन्तु मैत्रेयी शांत न रह सकी. इसी विषय पर उनका अपने पति के साथ तर्क – वितर्क हुआ. याज्ञवल्क्य भी अपनी पत्नी की विद्वता के आगे नतमस्तक हो उठे.
मैत्रेयी ने कहा – “यदि समूचे संसार का वैभव मेरे करतल पर आ जाए तो क्या मैं मोक्ष पा सकती हूँ?”
महर्षि जानते थे कि यह असंभव है. उन्होंने उत्तर दिया –
“न ,ऐसा तो होना कठिन है.”
तब मैत्रेयी ने दृढ भाव से कहा – “जिससे मुझे अमरता प्राप्त नहीं हो सकती, उसे मैं लेकर क्या करूंगी?
आप मुझे ज्ञान का उपदेश दें जिसे पाकर मैं भी अमर हो जाउँ.“
महर्षि अपनी पत्नी की जिज्ञासापूर्ण वाणी सुन कर गद्गद् हो उठे और कहा – 
“संसार में आत्मा ही सबसे बड़ी है. इसी का श्रवण, दर्शन व मनन करना चाहिए. इसके यथार्थ ज्ञान से ही प्राणी सब कुछ पा सकता है,”
मैत्रेयी ने अपने पति से ब्रह्म ज्ञान का उपदेश पाया. तत्पश्चात मैत्रेयी ने प्रार्थना की –
                   असतो मा सद्गमय 
                            तमसो मा ज्योतिर्गमय 
                  मृत्योमाअमृतं गमय 
                        आविरवीर्य एधि 
                    रूद्रे यत्ते दक्षिण मुखे 
                           तेन मा पाहि नित्यम् 
मैत्रेयी के यह शब्द आज भी कोटि – कोटि जन के प्रेरणा स्रोत हैं. 

Tuesday, 10 November 2015

The Great Indian Women Kalavati

भारत की महान नारी - रानी कलावती 
रानी कलावती ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी बलि चढ़ा दी. केवल भारत की ही मिटटी में ऐसी पतिव्रताएं जन्मी हैं जो जन्म – जन्मान्तर के साथी के लिए प्राण तक होम  कर देती हैं.
कलावती, राजा कर्णसिंह की अर्धांगिनी थी. उस समय स्त्रियों को अस्त्र – शस्त्र विद्या में भी निपुण किया जाता था. रानी भी युद्ध कौशल में निपुण थी.
एक बार अलाउद्दीन. खिलजी के सेनापति ने राजा के पास संदेश भिजवाया –  “हमारे समक्ष समर्पण करो अथवा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ.”
एक क्षत्रिय के लिए यह संदेश किसी चुनौती से कम न था कर्णसिंह ने निश्चय किया कि वह शत्रु को अपनी भूमि पर पाँव तक न धरने देगा.उसने युद्ध का ऐलान क्र दिया. चलते समय अन्तःपुर में रानी से विदा लेने पहुँचा तो कलावती ने एक अनूठी माँग की वह बोली –
“प्राणनाथ ! मैं आपके युद्ध –कौशल से अनभिज्ञ नहीं हूँ. यदि आप चाहें तो अकेले ही शत्रु – सेना का संहार कर  सकते हैं किन्तु मैं चाहती हूँ कि इस युद्ध में मैं आपके साथ चलूँ.मेरी अस्त्र –शस्त्र विद्या यदि काम न आई तो उसे धारण करने से क्या लाभ हुआ ?”

कर्णसिंह ने रानी को कहा –  “ मैं एक क्षत्रिय हूँ. जीते जी अपनी मातृभूमि पर शत्रु का पाँव न पड़ने दूंगा. तुम निश्चित रहो व यहीं हमारी प्रतीक्षा करो “

परन्तु रानी नहीं मानी.  राजा- रानी के साथ देशभक्त राजपूतों की सेना चल पड़ी. यद्दपि वे सब संख्या में बहुत कम थे किन्तु उनका मनोबल कहीं ऊँचा था घमासान युद्ध हुआ. मुगल सेना गाजर- मूली की तरह कट – कट कर गिरने लगी.
रानी कलावती भी एक जांबाज  सैनिक की भांति लड़ रही थी. तभी एक विष बुझा तीर राजा को लगा और वह बेहोश हो गया. रानी ने पति की इसी अवस्था देखी तो वह दुगुने जोश से तलवार चलाने लगी. रानी माँ के इस उत्साहपूर्ण कृत्य से बची –बची सेना भी जोश से भर उठी.
परिणामत: शत्रु सेना को पीछे हटना पड़ा. राजा कर्णसिंह की विजय हुई. रानी शीघ्रता से राजा के साथ महल लौटी.
राजवैध ने कहा – “यदि राजा के शरीर से विष न चूसा गया तो उनकी प्राण रक्षा  संभव नहीं है”
“क्या----?” महारानी कलावती स्तंभित हो उठी.
वैद्दराज ने आगे कहा – “किसी विषचूसक को बुलवाएँ क्योंकि इतना निश्चित है कि विष चूसने वाला नहीं बचेगा.”
वैद्दराज तो उपाय बता कर औषधि लेने चल दिए किन्तु रानी ने देर करना उचित न समझा. वह स्वयं पति के शरीर का विष चूसने लगी.
उसका मुख नीला पड़ने लगा. इधर राजा कर्णसिंह ने धीरे धीरे अपनी आंखें खोलीं और इधर रानी का निष्प्राण शरीर धरा पर लुढक गया.
रानी ने सिद्ध कर दिखाया कि नारी यदि चाहे तो यमराज से भी पति के प्राण लौटा सकती है जिस प्रकार सावित्री ने सत्यवान के प्राण बचाए.

Saturday, 7 November 2015

Lopamudra Female Philosopher of Vedic India

लोपामुद्रा : वैदिक भारत की महिला दार्शनिक 

लोपामुद्रा को कौशितकी और वरप्रदा के नाम से भी जाना जाता है. लोपामुद्रा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं.  उनके पिता विदर्भराज थे. प्राचीन भारतीय वैदिक साहित्य के अनुसार वह एक प्रसिद्द दार्शनिक थीं. लोपामुद्रा ने भी ऋचाओं का संकलन किया है.

अगस्त्य एवं लोपामुद्रा  Image: wikipedia
लोपामुद्रा का चरित्र भारतीय नारी का सटीक चित्रण प्रस्तुत करता है. वह पति की पद  – पद  अनुगामिनी थीं. उन्होंने कभी भी पति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया. जीवन में एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जब उन्होंने पति के किसी कार्य में दोष निकाला हो या अपना असंतोष प्रकट किया हो.
वह एक सुगृहिणी थीं. अतिथि सत्कार में उनकी विशेष रुचि थी. वे एक ऋचा में कहती हैं –
हे स्वामी ! सम्पूर्ण जीवन आपकी सेवा में बिता कर मैं थक गई हूँ. मैं वृद्धा हो गई हूँ. मेरे शरीर में पहले जैसी शक्ति नहीं रही. इतना होने पर भी मुझे आपकी सेवा में जो आनन्द आता है वह अतुलनीय है. आपकी सेवा ही मेरे जीवन की परम तपस्या है. हे प्रभु ! मुझ पर अपना अनुग्रह बनाए रखें.”
कहा जाता है कि लोपामुद्रा की रचना ऋषि अगस्त्य  ने ही की थी. जैसा कि उनके नाम से ही स्पष्ट है कि उनकी रचना के दौरान पशु -पक्षियों और पेड़ पौधों की मुद्राओं का लोप हो गया था. 

Tuesday, 13 October 2015

The Great Indian Scholar Lady Madalsa

महान विदुषी महिला मदालसा 

मदालसा एक विदुषी माँ थी जिनकी शिक्षा और संस्कारों के कारण उन्हें आज भी स्मरण किया जाता है.  इस महान विदुषी महिला का वर्णन श्री मार्कंडेय पुराण में मिलता है .

वे महाराज ऋतूध्वज की पत्नी थीं. उनके यहाँ चार पुत्र उत्पन्न हुए. उनके नाम थे - विक्रांत, सुबाहु, शत्रुमर्दन और अलर्क.


पहले तीन पुत्रों को माँ ने मोह माया से भरे संसार की निस्सारता का परिचय दिया.  वे तीनो गृहत्यागी सन्यासी बने. तब महाराज चिंतित हो उठे. उन्होंने पत्नी से कहा- प्रिये! तुम्हारे शिक्षा के प्रभाव से यदि चौथा पुत्र भी सन्यासी बन गया तो वंश के मर्यादा की रक्षा कौन करेगा. राज काज कौन सम्हालेगा.'
मदालसा ने स्मित हास्य से उत्तर दिया- 'स्वामी! मैं अलर्क को राजनीति की शिक्षा दूंगी. वह वंश बेल की वृद्धि करेगा.'
मदालसा ने अपने कहे को सत्य कर दिखाया. उनके दिए गए ज्ञान के बल पर अलर्क एक प्रतापी राजा बना. मदालसा की गणना महान भारतीय विदुषी महिला के रूप में किया जाता है.

Tuesday, 22 September 2015

सती अनसूया


भारतवर्ष की सती-साध्वी नारियों में अनसूयाजी का स्थान बहुत ऊँचा है.इनका जन्म अत्यंत उच्च कुल हुआ था.ब्रह्माजी के मानस पुत्र परम 
तपस्वी महर्षि अत्रिको इन्होने पति के रूप में प्राप्त किया था. अपनी सतत सेवा तथा प्रेमसे इन्होने महर्षि अत्रिके हृदयको जीत लिया था.



      भगवान को अपने भक्तोंका यश बढ़ाना होता है तो वे नाना प्रकार की लीलाएँ करते हैं.श्रीलक्ष्मीजी,श्रीसती जी और श्री सरस्वतीजी को अपने पतिव्रत्य का बड़ा अभिमान था.तीनों देवियोंके अहंकारको नष्ट करनेके लिए भगवानने नारदजी के मन में प्रेरणा की.फलत:ये श्रीलक्ष्मीजी के पास पहुँचे नारदजी को देखकर लक्ष्मीजी मुख-कमल खिल उठा. लक्ष्मीजीने कहा-‘आएये,नारदजी ! आप तो बहुत दिनों बाद आये. कहिये,क्या हाल है?’
  नारदजी बोले-‘माताजी! क्या बताउं,कुछ बताते नहीं बनता.अबकी बार मैं घूमता हुआ चित्रकूटकी ओर चला गया .वहाँ मैं महर्षि अत्रि के आश्रम पर पहुंचा. माताजी! मैं तो महर्षि की पत्नी अनसूयाजी का दर्शन करके कृतार्थ हो गया. तीनों लोकोंमें उनके समान पतिव्रता और कोई नहीं है.’ लक्ष्मीजी को यह बात बहुत बुरी लगी.उन्होंने पुछा-‘नारद!क्या वः मुझसे भी बढकर पतिव्रता है?’नार्द्जीने कहा-‘माताजी! आप ही नहीं, तीनों लोकोंमें कोई भी स्त्री सती अनसूया की तुलनामें किसी भी गिनतीमें नहीं है,’इसी प्रकार देवर्षि नारद ने सती और सरस्वती के पास जाकर उनके मन में सती अनसूया के प्रति ईर्ष्या की अग्नि जला दी अंत में तीनों देवियों ने त्रिदेवों से हठ करके उन्हें सती अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए बाध्य कर दिया.
ब्रह्मा,विष्णु और महेश महर्षि अत्रिके आश्रम पर पहुँचे.तीनों देव मुनिदेव में थे, उस समय महर्षि अत्रि अपने आश्रम पर नहीं थे. अतिथि के रूप में आये हुए त्रिदेवों का सती अनसूया ने स्वागत-सत्कार करना चाह, किन्तु त्रिदेवों ने उसे अस्वीकार कर दिया,
सती अनसूया ने उनसे पुछा-‘ मुनियों! मुझसे कौन-सा ऐसा अपराध हो गया, जो आपलोग मेरे द्वारा की हुई पूजको ग्रहण नहीं कर रहे हैं?’मुनियों ने कहा –‘देवि !यदि आप बिना वस्त्र के हमारा आतिथ्य करें तो हम आपके यहाँ भिक्षा ग्रहण करेंगे, यह सुनके सती अनसूया सोच में पद गईं, उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सारा रहस्य उनकी समझ में आ गया,वे बोलीं- ‘मैं आप लोगों का विवस्त्र होकर आतिथ्य करूंगी.यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूँ और मैंने कभी भी कामभाव से किसी पर-पुरूष का चिन्तन नहीं किया हो तो आप तीनों छ:-छ: माहके बच्चे बन जाएँ.’
  पतिव्रता का  इतना कहना था कि त्रिदेव छ:-छ: माह के बच्चे बन गये. माता ने विवस्त्र होकर उन्हें अपना स्तनपान कराया और उन्हें पालनेमें खेलने के लिए डाल दिया इस प्रकार त्रिदेव माता अनसूया के वात्सल्य प्रेमके बंदी बन गये, इधर जब तीनों देवियोंने देखा कि हमारे पति तो आये ही नहीं तो वे चिंतित हो गयीं आखिर तीनों अपने पतियों का पता लगाने के लिए चित्रकूट गयीं संयोगसे वहीं नारदजी से उनकी मुलाकात हो गयी. त्रिदेवियों उनसे अपने पतियों का पता पूछा. नारद ने कहा कि वे लोग तो आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं.त्रिदेवियों ने अनसूयाजी से आश्रम प्रवेश करने की आज्ञा मांगी. अनसूयाजी ने उनसे उनका परिचय पूछा. त्रिदेवियों ने कहा-‘माताजी! हम तो आपकी बहुएँ हैं. आप हमें क्षमा कर दें और हमारे पतियों को लौटा दें, अनसूया जी का हृदय द्रवित हो गया उन्होंने बच्चों पर जल छिरककर उन्हें उनका पूर्व रूप प्रदान किया और अंतत: उन त्रिदेवों की पूजा-स्तुति की.त्रिदेवों ने प्रसन्न होकर अपने-अपने अंशों से अनसूया के यहाँ पुत्ररूप में प्रकट होने का वरदान दिया.

Saturday, 22 August 2015

नारी शक्ति : सती सावित्री पौराणिक कथा

इस सीरीज में मैं प्राचीनकाल से लेकर अभी तक कुछ प्रसिद्ध महिलाओं के बारे में पोस्ट शेयर करूंगी, जिनपर हर  भारतीय गर्व करते हैं. 
सबसे पहले सती सावित्री के महान चरित्र, उनकी निष्ठा और समर्पण का वर्णन करना चाहूंगी जिसके दम पर वह यमराज से भी जा भिड़ीं और अपने पति के प्राण वापस लाकर ही छोड़ा.



प्राचीनकाल में मद्रदेश अश्वपति नाम के एक राजा राज्य करते थे वे बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय थे. राजा को सब प्रकार का सुख था, किन्तु उन्हें कोई संतान नहीं थी. इसलिए उन्होंने संतानप्राप्ति कामना से अठारह वर्षो तक सावित्री देवी की कठोर तपस्या की. सावित्री देवी ने उन्हें एक तेजस्विनी क्न्या की प्राप्ति का वर दिया. यथासमय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ. राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा. राजकन्या शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भांति दिनों-दिन बढ़ने लगी. धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया. उसके रूप-लावण्य को जो भी देखता उसपर मोहित हो जाता.
राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला. उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा- ‘बेटी! अब तुम विवाह के योग्य हो गयी हो, इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो.’ पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मंत्रियों के साथ स्वर्ण-रथ पर सवार होकर यात्रा के लिए निकली. कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आयी. अपने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देखकर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया.
महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा. सावित्री ने कहा-‘पिताजी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं. अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है.’ नारद जी सहसा चौंक उठे और बोले- ‘राजन! सवित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है. सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वे वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके हैं. सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है.’
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गये. उन्होंने सवित्रीसे कहा- ‘बेटी! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो.’ सावित्री सती थी. उसने दृढ़ता  से  कहा- ‘पिताजी ! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति हैं. जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरूष का वरण कैसे कर सकती हूँ?’
सावित्री का निश्चय दृढ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया. धीरे-धीरे वह  समय भी आ पहुंचा, जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी, सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था. पति एवं सास-ससुर की आज्ञासे सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने के लिए गयी. अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह  पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गया. उसी समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरूष दिखायी पड़ा. वे साक्षात् यमराज थे. उन्होंने सावित्री से कहा- ‘तू पतिव्रता है. तेरे पति की आयु समाप्त हो गयी है. मैं इसे लेने आया हूँ.’ इतना कहकर यमराज ने सत्यवान  के शरीरसे सूक्ष्म जीव को निकला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की तरफ चल दिए. सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी. यमराज ने उन्हें वापस लौट जाने को कहा. सावित्री करुण स्वर में बोली – ‘आप मेरे पति के प्राण को जहाँ भी ले जायेंगे, मैं भी वहीँ जाउंगी.’ सावित्री की पति के पति प्रेम को देखकर  यमराज का ह्रदय पिघल गया. उन्होंने सवित्री को एक वर मांगने को कहा. सावित्री ने उनसे अपने सास-ससुर की आँखे अच्छी होने का वर मांग लिया. यमराज फिर आगे बढ़े. सावित्री पीछे पीछे चलने लगी. यमराज ने फिर वर मांगने को कहा. इस प्रकार सावित्री ने अपने ससुर के राज्यप्राप्ति का वर, पिता को पुत्र-प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्रवती होने का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया.  यमराज फिर चल पड़े. सावित्री फिर पीछे- पीछे चल दी. अब यमराज बोले – अब तो लौट जाओ. फिर सावित्री बोली – ‘हे देव! आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है.’  तब यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिया. इस प्रकार सवित्री ने सतीत्व के  बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया. 

Friday, 14 August 2015

Happy Independence Day 2015

Wish you all a very very Happy Independence Day 2015. Let our country grow. Let the Women of India grow and lead a prosperous life. Jai Hind, Jai Bharat!


Sunday, 12 July 2015

जज्बा जीतने का - आयशा नूर अली


Ayesha Noor ( Photo: Telegraph India)
कोलकाता के झुग्गी झोपडी इलाके में रहने वाली आयशा नूर अली एक दिन कराटे चैंपियन बन जायेगी और थाईलैंड से गोल्ड मैडल लेकर आयेगी, ऐसा शायद किसी ने कल्पना भी नहीं किया होगा. आयशा को एपिलेप्टिक फूट बीमारी है, एक मजदुर परिवार से आती है. छः साल पहले उसके पिता का इंतकाल हो गया, लेकिन इन सबको पीछे छोड़ते हुए आयशा ने वो कारनामा कर दिखाया जो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जान पड़ता है. आयशा के भाई दैनिक मजदूरी कर आयशा को कराटे का प्रशिक्षण दिलवाते हैं. आयशा की माता जी कहती हैं : इसने कोलकाता, मुंबई और थाईलैंड से मैडल जीतकर लाया है. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि यह लड़की हमारा और देश का नाम रौशन का देगी.
आयशा का सिलेक्शन जब कराटे टूर्नामेंट थाईलैंड के लिए हुआ था तब उसके पास इतनी धनराशि भी नहीं थी वह थाईलैंड जा सके. भला हो मीडिया का और NGO का, जिनके प्रयास से धनराशि का इंतजाम हो पाया और वह थाईलैंड जा सकी.  सवाल यह उठता है कि क्या आयशा भी  कराटे की दुनिया में मैरी कोम की तरह छा जानेवाली है क्या?
ऐसे में भारत सरकार और बंगाल सरकार को उसकी मदद के लिए आगे आना चाहिए. आयशा का  कहना है कि वह बड़ी होकर गरीब बच्चे जो की खेल के माध्यम से आगे बढ़ना चाहती हैं उनका मदद करना चाहती है. इस होनहार लड़की ने अपनी दृढ लगन और मजबूत इरादे के बल पर नयी बुलंदी को छुआ है. आयशा ने 40 देशों के टूर्नामेंट में गोल्ड मैडल जीता. 30-25 किलो वर्ग के अन्य प्रतियोगी कहते हैं कि वह बहार तो बिलकुल शांत और शर्मीली सी दीखती है लेकिन रिंग में आते ही उसकी अटैकिंग और फुर्ती देखते ही बनाता है. आयशा का मानना है कि लड़कियां लडको से ज्यादा ताकतवर होती हैं. वह अपनी रक्षा बखूबी कर सकती हैं.

विदित हो कि 19 वर्षीया आयशा कराटे में ब्लैक बेल्ट है.

Saturday, 4 July 2015

सकारात्मक ऊर्जा का अक्षय स्रोत

नेपोलियन की सेना आल्पस महापर्वत के समीप आकर रुक गयी. सबका हिम्मत पस्त हो चला था. हजारों फीट ऊँचे इस महापर्वत के उस पार जाकर आक्रमण करना था. महानायक नेपोलियन ने अपने सैनिको के गिरते मनोबल को भांप लिया. 
सैनिको से आह्वान किया - " मेरे वीर सैनिको! समझो सामने आल्पस है ही नहीं.' सैनिक उत्साह से भर गए और देखते ही देखते आल्पस को लांघ गए.
साथियों! कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है. हम सामने मुसीबत को देख घबरा जाते हैं. हम उस कार्य को करने की बजाय उससे दूर भागने लगते हैं. लेकिन कभी किसी घरवाले या दोस्त या teacher की बात हमें नयी ऊर्जा से भर देते हैं और फिर हम उस काम को आसानी से कर लेते हैं.

नई ऊर्जा ब्लॉग हमने वैसे ही लोगों, युवाओं, छात्रों, छात्राओं, आदि के लिए बनाया है जो यहाँ आकर और यहाँ उपलब्ध पोस्ट, कहानी, जीवन गाथा, केस स्टडी, interview को पढ़कर लाभ उठाएंगे. तो आइये नयी ऊर्जा ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है. All  of you are most welcome. Thank You!